नई दिल्ली : सेक्स वर्करों (Sex workers)को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court)ने बड़ा कदम उठाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर पेशे की तरह मानव शालीनता और गरिमा की बुनियादी सुरक्षा सेक्स वर्कर्स के लिए भी उपलब्ध है. पुलिस को वर्कर्स के साथ सम्मान का व्यवहार करना चाहिए. मौखिक या शारीरिक रूप से उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए. SC ने केंद्र से पैनल की सिफारिशों पर जवाब मांगा है जिन पर आपत्ति जताई गई है.
- सेक्स वर्कर्स कानून के समान संरक्षण की हकदार हैं
-आपराधिक कानून सभी मामलों में ‘आयु’ और ‘सहमति’ के आधार पर समान रूप से लागू होना चाहिए
- जब यह स्पष्ट हो जाए कि सेक्स वर्कर वयस्क है और सहमति से भाग ले रही है, तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए
- ऐसी चिंताएं रही हैं कि पुलिस सेक्स वर्कर्स को दूसरों से अलग देखती है
- जब कोई सेक्स वर्कर किसी अन्य प्रकार के अपराध की शिकायत करती है तो पुलिस को इसे गंभीरता से लेना चाहिए और कानून के अनुसार कार्य करना चाहिए
- जब भी किसी वैश्यालय पर छापा मारा जाता है तो संबंधित सेक्स वर्कर्स को गिरफ्तार या दंडित या परेशान या पीड़ित नहीं किया जाना चाहिए
- क्योंकि स्वैच्छिक यौन कार्य अवैध नहीं है और केवल वेश्यालय चलाना अवैध है
- केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को सेक्स वर्कर्स या उनके प्रतिनिधियों को सभी फैसले लेने की प्रक्रियाओं में शामिल करना चाहिए
- सेक्स वर्कर के किसी भी बच्चे को केवल इस आधार पर मां से अलग नहीं किया जाना चाहिए कि वह देह व्यापार में है
- इसके अलावा, यदि कोई नाबालिग वेश्यालय में या सेक्स वर्कर के साथ रहता हुआ पाया जाता है तो यह नहीं माना जाना चाहिए कि उसकी तस्करी की गई है
- यदि सेक्स वर्कर का दावा है कि वह उसकी संतान है तो यह निर्धारित करने के लिए परीक्षण किया जा सकता है
- इस तरह नाबालिग को जबरन अलग नहीं किया जाना चाहिए
अदालत ने कहा, ‘यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि किसी भी पेशे के बावजूद इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार है. इस देश में सभी व्यक्तियों को दी जाने वाली संवैधानिक सुरक्षा को उन अधिकारियों द्वारा ध्यान में रखा जाएगा जिनके पास अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 के तहत ड्यूटी है. इसके अलावा, कोर्ट ने निर्देश दिया कि मीडिया को रेस्क्यू ऑपरेशन की रिपोर्ट करते समय यौनकर्मियों की तस्वीरें प्रकाशित नहीं करनी चाहिए, या उनकी पहचान का खुलासा नहीं करना चाहिए. कोर्ट ने ये निर्देश भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए सेक्स वर्कर्स के अधिकारों पर कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल द्वारा की गई कुछ सिफारिशों को स्वीकार करते हुए जारी किए. जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना ने स्पष्ट किया कि ये निर्देश तब तक लागू रहेंगे, जब तक केंद्र सरकार कानून लेकर नहीं आती.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 19.07.2011 को दिए आदेश में कहा कि यदि मीडिया ग्राहकों के साथ सेक्स वर्कर्स की तस्वीरें प्रकाशित करता है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 354 सी के तहत अपराध को लागू किया जाना चाहिए. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को इस संबंध में उचित दिशा-निर्देश जारी करने का निर्देश दिया गया है. 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्कर्स के लिए एक पैनल का गठन किया था. पैनल ने तीन पहलुओं की पहचान की थी -तस्करी की रोकथाम, यौन कार्य छोड़ने की इच्छा रखने वाली सेक्स वर्कर्स का पुनर्वास और संविधान के अनुच्छेद 21 के प्रावधानों के अनुसार सेक्स वर्कर्स जो सम्मान के साथ जीने के लिए अनुकूल परिस्थितियों में काम करना चाहती हैं. हितधारकों से परामर्श के बाद, पैनल ने एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी
न्यायालय ने राज्यों और केंद्र को को पैनल द्वारा की गई निम्नलिखित सिफारिशों का कड़ाई से अनुपालन करने का निर्देश दिया है.कोई भी सेक्स वर्कर जो यौन उत्पीड़न का शिकार है, उसे तत्काल चिकित्सा सहायता सहित सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए. राज्य सरकारों को सभी सुरक्षा गृहों का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया जाए ताकि वयस्क महिलाओं के मामलों की समीक्षा की जा सके, जिन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध हिरासत में लिया गया है और उन्हें समयबद्ध तरीके से रिहा करने के लिए कार्रवाई की जा सकती है. यह देखा गया है कि सेक्स वर्कर्स के प्रति पुलिस का रवैया अक्सर क्रूर और हिंसक होता है. यह ऐसा है जैसे वे एक ऐसा वर्ग हैं, जिनके अधिकारों को मान्यता नहीं है. पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाया जाना चाहिए. संविधान में गारंटीकृत सभी बुनियादी मानवाधिकार और अन्य अधिकार उन्हें भी उपलब्ध हैं. पुलिस को सभी सेक्स वर्कर्स के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करना चाहिए. उनके साथ मौखिक और शारीरिक दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए. उनके साथ हिंसा नहीं करनी चाहिए या उन्हें किसी भी यौन गतिविधि के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए. भारतीय प्रेस परिषद से आग्रह किया जाना चाहिए कि गिरफ्तारी, छापेमारी और बचाव कार्यों के दौरान सेक्स वर्कर्स की पहचान उजागर न करने के लिए मीडिया के लिए उचित दिशा-निर्देश जारी करें. सेक्स वर्कर्स अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए जो उपाय करते हैं (जैसे कंडोम का उपयोग आदि), उसे न तो अपराध माना जाना चाहिए और न ही उन्हें अपराध के सबूत के रूप में देखा जाना चाहिए. केंद्र सरकार और राज्य सरकारें, राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण, राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के माध्यम से, सेक्स वर्कर्स को उनके अधिकारों के साथ-साथ यौन कार्य की वैधता, पुलिस के अधिकारों और दायित्वों और कानून के तहत क्या अनुमति/ रोकहै, के बारे में शिक्षित करने के लिए कार्यशालाएं आयोजित करनी चाहिए. मामले पर अगली सुनवाई 27 जुलाई को होगी.